Sunday, August 2, 2009

''एक बंगला बने न्यारा ......''

बाहर कोई संगीत बज रहा है , ऐसा लगा
गीत चल रहा था ...
''एक बंगला बने न्यारा ......''
के एल सहगल साहब की आवाज मेंरात के करीब ग्यारह बजेयह गीत मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है
सारे जीवन का फल्स्फां इसी में दिखता है
मुझे शुरू से ही पुराने गानों की हवा नसीब हुई हैउन हवाओं में जो आनंद है ...वह नए गाने के झोकों में कहाँ
अतीत के भूले बिसरे गीत मुझे अपनी पुरानी तहजीब याद दिलाते हैसोचते सोचते आंखों में नमी छा जाती है