Tuesday, December 7, 2010

भारत में परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता

फ़्रांस की अरेवा कंपनी द्वारा महाराष्ट्र के जैतपुर में १६५० मेगावाट की दो नाभिकीय रिएक्टर स्थापित किया जायेगा .यह एक अच्छी खबर है .पर्यावरण मंत्रालय ने भी कुछ शर्तों के साथ इसकी स्थापना की इज़ाज़त दे दिया है .भारत को इस वक्त उर्जा की बहुत जरुरत है ,पेट्रोलियम के भण्डार यहाँ पर बहुत ही सीमित है तथा यह अपनी आवश्यकता का ७५ प्रतिशत से अधिक पेट्रोलियम आयात करता है .साथ ही कोयला के भण्डार भी सीमित ही है जो आगे आने वाले ४० -५० वर्षों में समाप्त हो जायेंगे .इस प्रकार भारत के पास बहुत सीमित   विकल्प है जिसमे परमाणु ऊर्जा भी एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में स्थापित हो सकता है .परमाणु ऊर्जा को स्वेत इंधन कहा जाता है क्योंकि इससे पर्यावरण को नुक्सान नहीं होता है .भारत के पास पनबिजली ,सौर्य उर्जा ,पवन उर्जा का भी विकल्प है और भारत सरकार के अंग उसके विकास के लिए काम भी कर रहे है .दिक्कत की बात यह है की ये सभी स्रोत मिलकर भी ऊर्जा संकट को दूर नहीं कर सकते और इनके विकास की गति भी धीमी है .कोयले के प्रयोग से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है जिससे ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या सामने आ रही है .परमाणु ऊर्जा के उपयोग से इसका समाधान हो सकता है .इससे कोयले और पेट्रोलियम पर हमारी निर्भरता भी कम होगी और विदेशी मुद्रा की बचत भी हो सकेगी .
परमाणु ऊर्जा की सबसे बड़ी समस्या इसकी सुरक्षा को लेकर है .परमाणु दुर्घटना होने पर लाखो लोगो की जाने जा सकती है और साथ ही साथ रेडिओ एक्टिव किरणों के वायुमंडल में विखरने के कारण भावी पीढी  को भी इसका दंश भुगतना पड़ेगा  .दुर्घटना के बाद मुआवजा राशि कितनी होगी,इसको लेकर भी विवाद बना हुआ है .अभी हाल ही में भारतीय संसद द्वारा परमाणु दुर्धटना मुआवजा आपूर्ति विधेयक पारित किया  गया है .इन सभी समस्याओं का समाधान खोज कर परमाणु ऊर्जा को एक वेहतर विकल्प के रूप में तैयार किया जा सकता है .इसी सन्दर्भ में फ़्रांस के साथ हुआ परमाणु समझौता काफी महत्वपूर्ण है ,इससे निश्चित रूप से भारत में ऊर्जा संकट के समाधान में कुछ मदद मिलेगी .भारत में अभी परमाणु ऊर्जा का कुल उत्पादन ४७२० मेगावाट है ..इसे द्रुत गति से बढाने की आवश्यकता है .

Thursday, December 2, 2010

पंचम

पंचम यानी राहुल देव वर्मन ने सत्तर के दशक में भारतीय फिल्म संगीत को एक नया आयाम दिया .इस दौर में गानों में और अधिक ताजगी आ गयी .प्रयोगधर्मी पंचम को मेहमूद ने अपनी पहली फिल्म ‘छोटे नवाब’ में अवसर दिया और पहले गीत ‘घर आजा घिर आए बदरा’ के लिए लता से प्रार्थना की.
अपनी प्रयोगधर्मिता के कारण ही पंचम को टेक्नोलॉजी के प्रति गहरा लगाव था। पंचम ने सचिन देव बर्मन के सहायक के रूप में काम किया और उनकी फिल्मों में कुछ रचनाएं भी की थीं, मसलन, फिल्म ‘प्यासा’ की ‘सिर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए’ और ‘आराधना’ का ‘रूप तेरा मस्ताना’ इत्यादि.
उन्हें पार्श्व संगीत के लिए प्रयोग करना पसंद था, जैसे खाली बोतल में फूंक मारने की ध्वनि ‘शोले’ में इस्तेमाल की है, तो रात भर जागकर बरसते पानी की ध्वनि को रिकॉर्ड किया है.

Friday, November 19, 2010

भीड़....

आज ज़िन्दगी के मायने बदल गए है .हर जगह भीड़ है .शुकून नहीं मिलता .कृत्रिम भीड़ ही ज्यादा दिखाई देती है वास्तविक हो तो कोई बात नहीं .सड़क पर भीड़ ...बाजार में भीड़ ...आकाश में भीड़ ...सागर में भीड़ ...मंदिर मस्जिद में भीड़ ....संसद में भीड़ ...स्कुल कालेज में भीड़ ...अस्पताल में भीड़ ... हर जगह भीड़ ही भीड़ .
भीड़ अच्छी बात हो सकती है पर इसे नियंत्रित किया जाय तो ...प्रशिक्षित किया जाय तो ,पर ऐसा  नहीं है, यह और बेतरतीब ढंग से बढती ही जा रही है .कुछ सियासी लोगों के लिए संजीवनी ही है .भीड़ में गुणवता लाने की कोशिश नहीं हो रही ,इसे बोझ बताने का चलन बढ़ रहा है . सरकार इसे अपनी नाकामी का बहाना बना रही है .
आगे भीड़ और बढ़ेगी ही ..तब बहाना बनाने वालो पर यह भारी साबित होगी . आपाधापी में जो आज कुछ चंद  लोग जो घी पी रहे है ..कल उनके मुंह से यह भीड़ घी छीन कर पी जायेगी ...तब व्यवस्था का दोष देना मुर्खता की बात होगी . आज ही चेत ले इससे सुन्दर कुछ नहीं होगा .

Thursday, November 18, 2010

भ्रष्टाचार.....

सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी हुई है ।

हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।


यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो ....

Monday, January 11, 2010

बलवन .....

बलवन दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने राजत्व की संकल्पना की और लूई चौदहवें की भांति राज्य को एक गंभीर पेशा बनाया . अलाउद्दीन  खिलजी ने उसके राजत्व की संकल्पना में बदलाव कर उसे नया रूप दिया .उसने बलवन से रक्त और लौह की निति को ग्रहण किया जबकि तुर्की नस्लवाद को छोड़ दिया .उसने जलालुद्दीन खिलजी की परोपकारिता की निति को भी त्याग दिया जबकि धर्मनिरपेक्ष तत्वों को अपनाया .बलवन अपने को व्यक्तिगत बलवन से शासक बलवन के रूप में ढाल लिया .एक तरफ जहाँ उसने तुर्की नस्लवाद को बढ़ावा दिया वहीँ दूसरी तरफ उसने अपने तुर्की विरोधियों को इस क्रूरता के साथ कुचला की भारत में तुर्की नस्ल का पराभव हो गया .वह मंगोलों से निपटने में भी पूरी तरह सक्षम नहीं हुआ ,उसके समय में दिल्ली सल्तनत की सीमा सिन्धु नदी से सिकुड़ कर व्यास नदी तक रह गयी .सुलतान के महत्व को प्रदर्शित करने के लिए उसने कुछ गैर इस्लामिक प्रथाओं को भी बढ़ावा दिया जैसे नौरोज ,सिजदा पैबोस आदि .
बलवन ने सुलतान की गरिमा को बढाने में जरुर सफल हुआ .उसने नए क्षेत्रों को जितने पर ध्यान न देकर आंतरिक व्यवस्था और अपने क्षेत्रों को सुरक्षित बनाने पर ही ध्यान दिया जो समय की मांग भी थी .  वह पहला शासक था जिसने राज्य को गंभीर पेशा बनाया और राजत्व की संकल्पना की .