जीवन एक संगिनी की तरह है । हमेशा आपके साथ । राह में हर मोड़ पर कदम मिलाते हुए ।
कुछ ख़त्म हो गया तो क्या हुआ । बहुत कुछ अभी बाकी है , मेरे दोस्त .....कहाँ खो गए ।
दोस्त ! एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती । बहुत से सपने अभी भी बुने
जा सकते है । टूटने दो यार एक सपने को ..वह टूटने के लिए ही था ।
हर शाम के बाद सुबह , हर सुबह के बाद शाम । यह तो प्रकृति का नियम है । अभी शाम है ...
मेरे दोस्त । सुबह का इन्तजार करो । आनेवाला ही है । फ़िर डर कैसा ? जम कर करो ,इन्तजार ।
क्या कहू दोस्त ....जीवन में अँधेरा भी तो जरुरी है । तभी तो उजाले का प्रश्फुटन होगा ।
अंधेरे के बाद का उजाला ज्यादा मीठा होता है । चख कर तो देखो ।
Wednesday, April 29, 2009
Wednesday, April 22, 2009
पृथ्वी दिवस का मजाक ....
२२ अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया गया । हर साल इसी दिन को मनाया जाता है । पृथ्वी को बचाने की तरकीब बनाई जाती है । लोगो में जागरूकता फैलाई जाती है । कई कार्यक्रम होते है । बंद कमरों में पृथ्वी की स्थिति पर चर्चा होती है । सेमिनारों में जानकार लोग जीवन को बचाने सम्बंधित बड़ी बड़ी बातें करते है । ये बातें २३ अप्रैल को भुला दी जाती है और फ़िर अगले २२ अप्रैल का इन्तजार शुरू हो जाता है ।
पृथ्वी दिवस भी होली , दिवाली ,दशहरा जैसे त्योहारों की तरह खुशी का दिन और खाने पिने का दिन मान कर मनाया जाने लगा है । इसके उद्देश्य को लोग केवल उसी दिन याद रखते है । बल्कि मै तो कहुगा की घडियाली आंसू बहाते है । हमें इस बात का अंदाजा नही है की कितना बड़ा संकट आने वाला है और जब पानी सर से ऊपर चला जायेगा तो चाहकर भी कुछ नही कर सकते , अतः बुद्धिमानी इसी में है की अभी चेत जाए ।
वैश्विक अतर पर पर्यावरण को बचाने की मुहीम १९७२ के स्टाकहोम सम्मलेन से होती है । इसी सम्मलेन में पृथ्वी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई और हरेक साल ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने पर सहमती व्यक्त की गई । १९८६ के मोंट्रियल सम्मलेन में ग्रीन हाउस गैसों पर चर्चा की गई । १९९२ में ब्राजील के रियो दे जेनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मलेन हुआ जिसमे एजेंडा २१ द्वारा कुछ प्रयास किए गए । इसी सम्मलेन के प्रयास से १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल को लागू करने की बात कही गई । इसमे कहा गया की २०१२ तक १९९० में ग्रीन हाउस गैसों का जो स्तर था , उस स्तर पर लाया जायेगा । अमेरिका की बेरुखी के कारण यह प्रोटोकाल कभी सफल नही हो पाया । रूस के हस्ताक्षर के बाद २००५ में जाकर लागू हुआ है । अमेरिका अभी भी इसपर हस्ताक्षर नही किया है । यह रवैया विश्व के सबसे बड़े देश का है , जो अपने आपको सबसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक देश बतलाता है । वह कुल ग्रीन हाउस गैस का २५%अकेले उत्पन्न करता है ।
अगर ऐसा ही रवैया बड़े देशो का रहा तो पृथ्वी को कोई नही बचा सकता । जिस औद्योगिक विकास के नाम पर पृथ्वी को लगातार लुटा जा रहा है , वे सब उस दिन बेकार हो जायेगे जब प्रकृति बदला लेना आरम्भ करेगी ।
पृथ्वी दिवस भी होली , दिवाली ,दशहरा जैसे त्योहारों की तरह खुशी का दिन और खाने पिने का दिन मान कर मनाया जाने लगा है । इसके उद्देश्य को लोग केवल उसी दिन याद रखते है । बल्कि मै तो कहुगा की घडियाली आंसू बहाते है । हमें इस बात का अंदाजा नही है की कितना बड़ा संकट आने वाला है और जब पानी सर से ऊपर चला जायेगा तो चाहकर भी कुछ नही कर सकते , अतः बुद्धिमानी इसी में है की अभी चेत जाए ।
वैश्विक अतर पर पर्यावरण को बचाने की मुहीम १९७२ के स्टाकहोम सम्मलेन से होती है । इसी सम्मलेन में पृथ्वी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई और हरेक साल ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने पर सहमती व्यक्त की गई । १९८६ के मोंट्रियल सम्मलेन में ग्रीन हाउस गैसों पर चर्चा की गई । १९९२ में ब्राजील के रियो दे जेनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मलेन हुआ जिसमे एजेंडा २१ द्वारा कुछ प्रयास किए गए । इसी सम्मलेन के प्रयास से १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल को लागू करने की बात कही गई । इसमे कहा गया की २०१२ तक १९९० में ग्रीन हाउस गैसों का जो स्तर था , उस स्तर पर लाया जायेगा । अमेरिका की बेरुखी के कारण यह प्रोटोकाल कभी सफल नही हो पाया । रूस के हस्ताक्षर के बाद २००५ में जाकर लागू हुआ है । अमेरिका अभी भी इसपर हस्ताक्षर नही किया है । यह रवैया विश्व के सबसे बड़े देश का है , जो अपने आपको सबसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक देश बतलाता है । वह कुल ग्रीन हाउस गैस का २५%अकेले उत्पन्न करता है ।
अगर ऐसा ही रवैया बड़े देशो का रहा तो पृथ्वी को कोई नही बचा सकता । जिस औद्योगिक विकास के नाम पर पृथ्वी को लगातार लुटा जा रहा है , वे सब उस दिन बेकार हो जायेगे जब प्रकृति बदला लेना आरम्भ करेगी ।
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Tuesday, April 21, 2009
हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।
सुना है पृथ्वी गोल है । हो सकता है , ब्रह्माण्ड भी गोल हो । किसे पता ?? भाई हमारी भी तो एक सीमा है । सबकुछ नही जान सकते । कुछ दुरी तक ही भाग दौड़ कर सकते है । भाग दौड़ करते रहे । इसी का नाम तो जीवन है । इतना सलाह जरुर देना चाहुगा की सबकुछ जानने के चक्कर में न पड़े । यह एक बेकार की कवायद है । इस राह पर चल मंजिल को पाना तो दूर की बात है , खो जरुर देगे ।
इधर ये भी सुनने में आया है की एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है ...शायद २०२८ में !
यह सनसनी है या हकीकत नही पता ।
अगर सनसनी है ...तो है ..पर वास्तव में ऐसा है तो परीक्षा की घड़ी आ गई है ...
इस खबर को सुनकर सुमेकर लेवी वाली घटना याद आती है , जब मै बच्चा था । सुमेकर बृहस्पति से जा टकराया था । यह घटना १९९४ की है । उस समय ऐसी ख़बर सुन डर गया था ।
देखते है ...२०२८ में क्या होता है .......
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।
सुना है पृथ्वी गोल है । हो सकता है , ब्रह्माण्ड भी गोल हो । किसे पता ?? भाई हमारी भी तो एक सीमा है । सबकुछ नही जान सकते । कुछ दुरी तक ही भाग दौड़ कर सकते है । भाग दौड़ करते रहे । इसी का नाम तो जीवन है । इतना सलाह जरुर देना चाहुगा की सबकुछ जानने के चक्कर में न पड़े । यह एक बेकार की कवायद है । इस राह पर चल मंजिल को पाना तो दूर की बात है , खो जरुर देगे ।
इधर ये भी सुनने में आया है की एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है ...शायद २०२८ में !
यह सनसनी है या हकीकत नही पता ।
अगर सनसनी है ...तो है ..पर वास्तव में ऐसा है तो परीक्षा की घड़ी आ गई है ...
इस खबर को सुनकर सुमेकर लेवी वाली घटना याद आती है , जब मै बच्चा था । सुमेकर बृहस्पति से जा टकराया था । यह घटना १९९४ की है । उस समय ऐसी ख़बर सुन डर गया था ।
देखते है ...२०२८ में क्या होता है .......
Monday, April 20, 2009
पालिश किया हुआ चावल और मक्का न खाएं .....
बेरी बेरी रोग विटामिन B1 की कमी से होता है ।
इस विटामिन को एन्तिन्युरेतिक फैक्टर भी कहते है ।
बेरी -बेरी का रोग उन क्षेत्रों में अधिक होता है जहाँ पर पालिश किया हुआ चावल खाया जाता है ।
दालें , हरी पत्तीदार सब्जियां ,मुगफली आदि इसके प्रमुख स्रोत है ।
यकृत ,वृक्क ,दूध तथा अंडे की जर्दी में यह विटामिन पाया जाता है ।
चोकरयुक्त आटे की रोटी और दलिया इसके सर्वोत्तम स्रोत है ।
पेलाग्रा नामक रोग विटामिन B7 की कमी से होता है ।
इस विटामिन को नाइसिन या निकोटिनिक अम्ल कहते है ।
पेलाग्रा सामान्यतः उन क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है जहाँ मक्का प्रमुख आहार है ।
मक्का शरीर में नाइसिन के अवशोषण में बाधक है , जिसके कारण यह रोग होता है ।
पेलाग्रा के प्रमुख लक्षण है - त्वचा में जलन ,छाजन ,स्मृति विकार , अतिसार आदि ।
इस रोग को 4D सिंड्रोम भी कहते है ।
मटर , अन्न की भूसी ,सेम ,हरी पत्तेदार सब्जियाँ , कॉफी , यकृत , मछली ,दूध आदि विटामिन B7 के प्रमुख स्रोत है ।
इस विटामिन को एन्तिन्युरेतिक फैक्टर भी कहते है ।
बेरी -बेरी का रोग उन क्षेत्रों में अधिक होता है जहाँ पर पालिश किया हुआ चावल खाया जाता है ।
दालें , हरी पत्तीदार सब्जियां ,मुगफली आदि इसके प्रमुख स्रोत है ।
यकृत ,वृक्क ,दूध तथा अंडे की जर्दी में यह विटामिन पाया जाता है ।
चोकरयुक्त आटे की रोटी और दलिया इसके सर्वोत्तम स्रोत है ।
पेलाग्रा नामक रोग विटामिन B7 की कमी से होता है ।
इस विटामिन को नाइसिन या निकोटिनिक अम्ल कहते है ।
पेलाग्रा सामान्यतः उन क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है जहाँ मक्का प्रमुख आहार है ।
मक्का शरीर में नाइसिन के अवशोषण में बाधक है , जिसके कारण यह रोग होता है ।
पेलाग्रा के प्रमुख लक्षण है - त्वचा में जलन ,छाजन ,स्मृति विकार , अतिसार आदि ।
इस रोग को 4D सिंड्रोम भी कहते है ।
मटर , अन्न की भूसी ,सेम ,हरी पत्तेदार सब्जियाँ , कॉफी , यकृत , मछली ,दूध आदि विटामिन B7 के प्रमुख स्रोत है ।
Thursday, April 16, 2009
सम्राट अशोक ...
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के नवें वर्ष में कलिंग पर विजय प्राप्त की ।
उसने खस , नेपाल को जीता तथा तक्षशिला के विद्रोह को शांत किया ।
बिन्दुसार की मृत्यु के बाद वह मौर्य वंश का राजा हुआ ।
कलिंग को जितने के बाद तोशली को कलिंग की राजधानी बनायी गई ।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने धम्म विजय की निति को अपनाया ।
यह उसका पहला और आखिरी युद्ध था ।
उतर पश्चिम में शाह्बाज्गाधि और मानसेरा में अशोक के शिलालेख पाये गए है ।
काबुल के लम्गान में भी अशोक के लेख अरामाइक लिपि में मिलते है ।
उतर पश्चिम में अशोक के साम्राज्य की सीमा हिन्दुकुश थी ।
काल्शी , रुमिन्देई और निगाली सागर अभिलेखों से पता चलता है की देहरादून और नेपाल की तराई के क्षेत्र अशोक के राज्य में थे ।
उसने खस , नेपाल को जीता तथा तक्षशिला के विद्रोह को शांत किया ।
बिन्दुसार की मृत्यु के बाद वह मौर्य वंश का राजा हुआ ।
कलिंग को जितने के बाद तोशली को कलिंग की राजधानी बनायी गई ।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने धम्म विजय की निति को अपनाया ।
यह उसका पहला और आखिरी युद्ध था ।
उतर पश्चिम में शाह्बाज्गाधि और मानसेरा में अशोक के शिलालेख पाये गए है ।
काबुल के लम्गान में भी अशोक के लेख अरामाइक लिपि में मिलते है ।
उतर पश्चिम में अशोक के साम्राज्य की सीमा हिन्दुकुश थी ।
काल्शी , रुमिन्देई और निगाली सागर अभिलेखों से पता चलता है की देहरादून और नेपाल की तराई के क्षेत्र अशोक के राज्य में थे ।
Saturday, April 11, 2009
विष्णु प्रभाकर हमेशा याद आते रहेगे ...
आज विष्णु प्रभाकर हमारे बीच से चले गए लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा लोगों के साथ रहेंगी। प्रभाकर को पद्मभूषण दिया गया था, लेकिन देर से दिए जाने के कारण अपने आत्म सम्मान पर चोट मानते हुए लेने से इनकार कर दिया था । उन्होंने अपने स्वाभिमान से कभी भी समझौता नही किया । उनका साहित्य पुरस्कारों से नही बल्कि पाठको के स्नेह से प्रसिद्ध हुआ ।
उनका जन्म 20 जुलाई 1912 को उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गांव में हुआ था। छोटी उम्र में ही वह पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हिसार चले गए थे। प्रभाकर पर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी को अंग्रेजों के ख़िलाफ़ हथियार के रूप में प्रयोग किया।
१९३१ में हिन्दी मिलाप में उनकी पहली कहानी छपी और इसी से उनका साहित्य जगत में आगाज हुआ । आजादी के बाद उन्हें दिल्ली आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक बनाया गया। शरतचंद की जीवनी परआधारित आवारा मसीहा उनकी प्रसिद्ध रचना है । उनको साहित्य सेवा के लिए पद्म भूषण, अर्द्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान और मूर्तिदेवी सम्मान सहित देश विदेश के कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
उनका जन्म 20 जुलाई 1912 को उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गांव में हुआ था। छोटी उम्र में ही वह पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हिसार चले गए थे। प्रभाकर पर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी को अंग्रेजों के ख़िलाफ़ हथियार के रूप में प्रयोग किया।
१९३१ में हिन्दी मिलाप में उनकी पहली कहानी छपी और इसी से उनका साहित्य जगत में आगाज हुआ । आजादी के बाद उन्हें दिल्ली आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक बनाया गया। शरतचंद की जीवनी परआधारित आवारा मसीहा उनकी प्रसिद्ध रचना है । उनको साहित्य सेवा के लिए पद्म भूषण, अर्द्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान और मूर्तिदेवी सम्मान सहित देश विदेश के कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
Friday, April 10, 2009
सादगी ....
सादगी केवल एक शब्द ही नही , जीवन दर्शन है । सच्चाई का दूसरा नाम । सुन्दरता का प्रतिक ।
इस जमाने में भी कभी कभी दिख जाती है । पर गुमशुम ही रहती है ।
क्या करे ? मजाक नही बनना चाहती ।
सभी की जिंदगी में बुरा समय आता है । आशा रखो ... अंततः जीत सच्चाई की ही होगी । देर भले हो जाय ।
इस जमाने में भी कभी कभी दिख जाती है । पर गुमशुम ही रहती है ।
क्या करे ? मजाक नही बनना चाहती ।
सभी की जिंदगी में बुरा समय आता है । आशा रखो ... अंततः जीत सच्चाई की ही होगी । देर भले हो जाय ।
Wednesday, April 8, 2009
सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है
वो गंगा । अब नही दिखती । जिसकी आवाज में मधुरता थी । चेहरा देखने के लिए आईने की जरुरत नही थी । जो हमारी प्यास भी बुझाती थी । आज गंदे नाले में बदल गई । उसका कोई दोष नही । वो तो अपने हालत पर रो रही है । उस दिन को याद कर रही है, जब भगीरथ ने धरती पर अवतरित किया । याचना कर रही है ...अब भी छोड़ दो । उसकी आवाज सुनने वाला कोई नही । सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है ।
Tuesday, April 7, 2009
खुशी .....
कुछ नया करो , जिसमे खुशी मिले । काम बहुत छोटा ही क्यों न हो । इश्वर है न , वह निर्णय लेगा । तो फ़िर लोगो की बातों पर क्यों जाते हो ?वो तुम्हे खुशी नही दे सकते ।
Sunday, April 5, 2009
लज्जा और हया
लज्जा और हया शब्द तो म्यूजियम में रखने योग्य हो गए है । लोगो को दिखाया जायेगा ... ये कभी भारत के अनमोल धरोहर होते थे । लोग विश्वास नही करेगे और बहस शुरू हो जायेगी ।
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