Sunday, November 22, 2009
समुद्रगुप्त ..
समुद्रगुप्त ही गुप्त वंश का वास्तविक निर्माता था । उसका प्रधान सचिव हरिसेन ने प्रयाग प्रशस्ति की रचना की जिसमे समुद्रगुप्त के विजयों के बारें में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । समुद्रगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ भी करवाया । वह वीणा बजाने में भी कुशल था । उसके दरबार में बुधघोष जैसे विद्वान् आश्रय पाते थे ।
Saturday, November 14, 2009
तेरी याद को कहीं दूर छोड़ आऊँ मै......
यादें ....उफ्फ ये यादें । ज़िन्दगी भर का दर्द ...और गम । कभी दिन के उजालें में तो कभी रात के अन्धेरें में । कभी मेले में तो कभी वीराने में हलचल ...
उफ्फ ये यादें .....मानो जीवन भर साथ निभाने का ठेका ले रखा है ।
क्या करूँ ...अब तो इस बेचारे पर उसे दया भी नही आती ।
सच ! सोच कर ही काँप जाता हूँ ....उफ्फ ये यादें ।
किस्मत सो गई .... आखे थक गई । अब जाओ ..... मै भी जा चुका । अब मुझे तन्हा रहने दो । मुझे मजाक बनने दो .... तुमसे कोई शिकायत नही । गलती मेरी है । इतना चाहा । सारा जीवन दे दिया । अब मेरी शाम आ गई है तो तुम भी ...
पागल था । तेरी मुस्कुराहटों का । जागता था रातभर तुमको यादकर ..... तुमने अपनी अदाओं से जादू कर दिया ।
मै खिचता चला गया । तू मेरी मंजील थी । अब मै क्या राहें भी थक गई पर तेरा दर्शन नही हुआ । अब मै जा रहा हूँ ...... सबको छोड़कर ।
बेफिक्री से जीना चाहता हूँ । कुछ हाथ नही लगने पर भी मस्त रहना चाहता हूँ ।
क्या यह वश में है ?.......शायद !
अबूझ पहेली तो नही हूँ ,शायद उतनी योग्यता भी नही है । सच कहूँ ...मै अबूझ बन कर रहना भी नही चाहता ।
पहेली बुझाने या बुझने में मजा नही आता । खुले विचारों की कद्र करता हूँ ।
जिंदगी को एक पहेली नही बनाना चाहता । क्या यह वश में है ?......शायद !
अन्दर तो छोडिये साब ...छत पर लेट कर भी कोई समाधान नही खोज पता । इसे जड़ता नही कहा जाए तो और क्या ?हालत तो ऐसी है की जब अपनी ही पीडाओं का पता नही तो दूसरों ......!
अभी भी रोटी के संघर्ष को नही जान पाया । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
घर और मुल्क की गरीबी का कोई प्रभाव नही पड़ा । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
Tuesday, November 10, 2009
अशोक के लघु स्तम्भ लेख ....
सम्राट अशोक की राजकीय घोषणाएँ जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है जो निम्न स्थानों पर स्थित हैं-
१. सांची- मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है ।
२. सारनाथ- उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है ।
३. रूभ्मिनदेई- नेपाल के तराई में है ।
४. कौशाम्बी- इलाहाबाद के निकट है ।
५. निग्लीवा- नेपाल के तराई में है ।
६. ब्रह्मगिरि- यह मैसूर के चिबल दुर्ग में स्थित है ।
७. सिद्धपुर- यह ब्रह्मगिरि से एक मील उ. पू. में स्थित है ।
८. जतिंग रामेश्वर- जो ब्रह्मगिरि से तीन मील उ. पू. में स्थित है ।
९. एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है ।
१०. गोविमठ- यह मैसूर के कोपवाय नामक स्थान के निकट है ।
११. पालकिगुण्क- यह गोविमठ की चार मील की दूरी पर है ।
१२. राजूल मंडागिरि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है ।
१३. अहरौरा- यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है ।
१४. सारो-मारो- यह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित है ।
१५. नेतुर- यह मैसूर जिले में स्थित है ।
Saturday, November 7, 2009
अशोक के १४ शिलालेख....
अशोक के १४ शिलालेख विभिन्न लेखों का समूह है जो आठ स्थानों से प्राप्त किए गये हैं-
(१) धौली- यह उड़ीसा के पुरी जिला में है ।
(२) शाहबाज गढ़ी- यह पाकिस्तान (पेशावर) में है ।
(३) मान सेहरा- यह हजारा जिले में स्थित है ।
(४) कालपी- यह वर्तमान उतराखंड (देहरादून) में है ।
(५) जौगढ़- यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है ।
(६) सोपरा- यह महराष्ट्र के थाणे जिले में है ।
(७) एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है ।
(८) गिरनार- यह काठियावाड़ (गुजरात ) में जूनागढ़ के पास है ।
Wednesday, November 4, 2009
उम्मीद ...
अभी भी रोटी के संघर्ष को नही जान पाया । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
घर और मुल्क की गरीबी का कोई प्रभाव नही पड़ा । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
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कहने को तो ..... नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । अफ्शोश !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।
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आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।