Tuesday, May 8, 2012

चार्ल्स स्पेंसर चैप्लिन

ऐसा मानना है की वे अपनी असली ज़िन्दगी में भी अपने जूते उलटे पहनते थे. चार्ली का जन्म 16 अप्रैल 1889 में वालवार्थ शहर, लन्दन में हुआ था. इनका असली नाम चार्ल्स स्पेंसर चैप्लिन था. चैप्लिन, फ़िल्मी दुनिया के सबसे प्रभावशाली व रचनात्मक व्यक्तियों में से एक थे. वे अपनी अधिकांश फिल्मों में अभिनय, पटकथा लेखन, निर्देशन और निर्देशक का कार्य करते थे. उनकी ज़िन्दगी प्रशंसा और विवाद दोनों से भरी हुई थी.

"तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं है चार्ली...

१९४० में जब चार्ली ने अपनी फ़िल्म द ग्रेट डिक्टेटर पर काम करना शुरू किया तो अडोल्फ़ हिटलर का मज़ाक उड़ाती इस फ़िल्म की सफलता को लेकर उनके मन में गम्भीर संशय थे. वे अपने दोस्तों से लगातार पूछा करते थे - "सही बताना. मुझे इस फ़िल्म को बनाना चाहिये या नहीं? मान लिया हिटलर को कुछ हो गया तो? या जाने कैसी परिस्थितियां बनें?" चैप्लिन के प्रैय मित्र डगलस फ़ेयरबैंक्स ने चार्ली से कहा - "तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं है चार्ली! यह मानव इतिहास की सबसे चमत्कारिक ट्रिक होने जा रही है - कि दुनिया का सबसे बड़ा खलनायक और दुनिया का सनसे बड़ा मसखरा, दोनों एक जैसे दिखें. अब अगर मगर बन्द करो और फ़िल्म में जुट जाओ."

चार्ली चैप्लिन

एक दफ़ा चार्ली चैप्लिन अपने मित्र मशहूर चित्रकार पाब्लो पिकासो से मिलने गए. चैप्लिन का बचपन लन्दन के ईस्ट एन्ड की गुरबत में बिया था और बचपन में सीखे गए उसके सबक ताज़िन्दगी उनके साथ रहे. पाब्लो किसी पेन्टिंग पर काम कर रहे थे. बातों बातों में उनके ब्रश से पेन्ट के कुछ छींटे चार्ली की नई सफ़ेद पतलून पर लग गए. पाब्लो ने झेंपते हुए माफ़ी मांगी और पतलून से रंग साफ़ करने के लिए किसी चीज़ को ढूंढने लगे. चार्ली ने तुरन्त कहा - "छोड़ो पाब्लो! अपनी कलम निकाल कर मेरी पतलून पर अपने दस्तख़त कर दो बस!"

चार्ली चैप्लिन

अमेरिका से साम्यवाद का सफाया करने की मुहिम में जुटी एफबीआई को डर सता रहा था कि चैप्लिन कम्युनिस्ट हैं। एफबीआई का यह भी मानना था कि चैप्लिन का असली नाम इजरायल थोर्नस्टेन था। इसके लिए उन्होंने एमआई-5 से सहायता मांगी थी। हालांकि एमआई-5 चैप्लिन के जन्म से संबंधित जानकारियों का पता लगाने में नाकामयाब रही और उसे इस बात का भी कोई सुबूत नहीं मिला कि चैप्लिन अमेरिका के लिए किसी तरह का खतरा बन सकते थे।

चार्ली चैप्लिन

२३ सितम्बर १९३१ को जब गाँधीजी और चार्ली चैप्लिन संयोग से लंदन में थे तो दोनों की मुलाकात हुई। इस मुलाकात के वक्त गाँधीजी और चार्ली दोनों के प्रशंसकों का हुजूम रास्ते पर जमा हो गया था। बहुत भीड़ हो गई। ऐसा कहा जाता है कि इस संक्षिप्त मुलाकात में गाँधीजी ने चार्ली से कहा था कि असली आजादी तो तभी मिल सकती है जब हम गैर जरूरी चीजों से छूट सके। कहा जाता है कि इस मुलाकात के बाद ही चार्ली ने गाँधी जी के विचारों को जाना और समझा कि वे बढ़ते मशीनीकरण हैं। इस विषय पर बाद के वर्षों में चार्ली ने "मॉडर्न टाइम्स" मर्मस्पर्शी फिल्म बनाई थी जो उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में है।

चार्ली चैप्लिन

ब्रिटेन में पैदा हुए और अमेरिका में जाकर दुनियाभर में मशहूर हुए चार्ल्स ने घोर गरीबी देखी। माँ-पिता को अलग होते देखा। भूख और बदलते रिश्तेदारों को देखा। घर के लगातार बदलते पते देखे। और फिर आखिरकार अपनी माँ को इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद यह महान कलाकार दुखी लोगों के होंठों पर हँसी खिलाने के लिए अभिनय करता रहा।

विकास की कीमत

कभी-कभी लगता है की विकास की कीमत कुछ ज्यादा चुकानी पड़ रही है ।