Thursday, September 29, 2011

प्रजातंत्र का पिता--रूसो

रूसो को प्रजातंत्र का पिता माना जाता है ।
अन्य प्रबुद्ध चिन्तक जहाँ व्यक्ति के स्वतंत्रता की बात करते है , वही रूसो समुदाय के स्वतंत्रता की बात करता है ।
अपने ग्रन्थ सोशल कोंट्रेक्त में घोषित किया की सामान्य इच्छा ही प्रभु की इच्छा है ।
रूसो ने कहा की सभी लोग समान है क्योंकि सभी प्रकृति की संतान है ।
कई स्थलों पर रूसो ने सामान्य इच्छा की अवधारणा को स्पस्ट नही किया है ।
एक व्यक्ति भी इस सामान्य इच्छा का वाहक हो सकता है । अगर वह उत्कृष्ट इच्छा को अभिव्यक्त करने में सक्षम है ।
इसी स्थिति का लाभ फ्रांस में जैकोवियन नेता रोस्पियर ने उठाया ।

Friday, September 23, 2011

ONLY NEWS: टाइगर पटौदी

ONLY NEWS: टाइगर पटौदी: 1941 में भोपाल में जन्मे पटौदी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। हालत नाजुक होने पर उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया था। उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट...

Sunday, September 11, 2011

मत्स्य पुराण में लिंग पूजा का उल्लेख मिलता है ।
कालिदास शिवोपासक थे ।
भारवि ने अपने महाकाव्य किरातार्जुनीय में अर्जुन और शिव के बिच युद्ध का वर्णन किया है ।
वाकातक शासक प्रवार्शें द्वितीय को सेतुबंध नामक कृति का रचयिता माना जाता है ।
कनिष्क के दरबार में पार्श्व ,वसुमित्र और अश्वघोष जैसे विद्वान् थे ।
मेगास्थनीज के अनुसार मौर्य काल में बिक्री कर नही देने वाले को मृत्यु दंड मिलता था ।
बौध धर्म के अनुसार महापरिनिर्वान मृत्यु के बाद ही संभव है ।

Sunday, September 4, 2011

हरिवंशराय बच्चन ...है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है?


कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है?
बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है?
क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुसकराना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है?
हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा
अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है?
हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है?
क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है?
                                                                        है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है?