Thursday, July 26, 2012

सुलगता भारत --असम में हिंसा भारतीय लोकतंत्र की कमजोरी और तुष्टिकरण का प्रतीक है

असम में हिंसा भारतीय लोकतंत्र की कमजोरी और तुष्टिकरण का प्रतीक है .इससे यह भी पता चलता है कि हमें आग लग जाने पर कुआं खोदने की पुरानी बिमारी है .तरुण गोगोई की सरकार लगातार तीसरी बार असम में सत्ता में आई तो इसका मतलब ये नहीं कि वो हाथ पर हाथ धरे बैठ सकती है या उसे ऐसा करने का जनाधार मिला है .समय रहते न चेतना आज के लोकतांत्रिक सरकारों की आदत बनती जा रही है .इस तरह की आदतों का शिकार वैसी पार्टियाँ अधिक है जिन्हें मतदाता लगातार चुनकर भजते रहते है .उनके नेताओं में कहीं न कही सामंतवादी सोच का उद्भव होने लगा है .यह लोकतांत्रिक सामंतवाद मध्यकालीन सामंतवाद से अधिक खतरनाक है .आज सुनियोजित ढंग से आम आदमी को प्रताड़ित किया जा रहा है ....कुछ नए नेताओं को तो व्यवस्थित रूप से इसकी ट्रेनिंग डी जा रही है .

एक कहावत है , जैसा राजा वैसी प्रजा. आज के सन्दर्भ में भी इस कहावत की अहमियत उतनी ही है जितनी राजशाही के समय में थी बल्कि मेरा तो मानना है की आज यह अधिक सटीक है . लोकतांत्रिक अंगों की दुर्बलता देख कुछ असामाजिक तत्व इसका भरपूर फायदा उठाते है और उन्हें कुछ विकृत मानसिकता वाले नेताओं का भी भरपूर समर्थन मिलता है. असम के मौजूदा हालात में सरकार निक्कमी दिख रही है या फिर उसको इस जनसंहार और हिंसा में कुछ फायदा दिख रहा है .सबको पता है असम के कोकराझार ,चिरांग आदि जिलों में आदिवासियों और मुस्लिमों के मध्य हिंसा कोई अनोखी घटना नहीं है . अभी चार साल पहले ही २००८ में ऐसी वारदातें हो चुकी है . फिर भी सबक न लेना सरकार के लकवाग्रस्त होने की ही निशानी है .

Sunday, July 22, 2012

उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे...

कहाँ तक ये मन को, अँधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे

कभी सुख, कभी दुःख, यही जिन्दगी है
ये पतझड का मौसम, घड़ी दो घड़ी है
नए फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन ...

भले तेज कितना हवा का हो झोंका
मगर अपने मन में तू रख ये भरोसा
जो बिछड़े सफ़र में तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन ...

कहे कोई कुछ भी, मगर सच यही है
लहर प्यार की जो, कही उठ रही है
उसे एक दिन तो, किनारे मिलेंगे
उदासी भरे दिन ...

Thursday, July 12, 2012

हिंदूकुश

यह मध्य एशिया की विस्तृत पर्वतमाला है, जो पामीर क्षेत्र से लेकर काबुल के पश्चिम में कोह-इ-बाबा तक 800 किमी लंबाई में फैली हुई है। यह पर्वतमाला हिमालय का ही प्रसार है, केवल बीच का भाग सिंधु नद द्वारा पृथक्‌ हुआ है। प्राचीन भूगोलविद् इस पर्वतश्रेणी को भारतीय कॉकेशस (Indian Caucasus) कहते थे। इस पर्वतमाला का 320 किमी लंबा भाग अफगानिस्तन की दक्षिणी सीमा बनाता है। इस पर्वतमाला का सर्वोच्च शिखर तिरिचमीर है जिसकी ऊँचाई 7712 मी है। इसमें अनेक दर्रें हैं जो 3792 मी से लेकर 5408 मी की ऊँचाई तक में हैं। इन दर्रों में वरोगहिल (Baroghil) के दर्रें सुगम हैं। हिंदूकुश आब-इ-पंजा से धीरे धीरे पीछे हटने लगता है और दक्षिण पश्चिम की ओर मुड़ जाता है तथा इसकी ऊँचाई बढ़ने लगती हैं और प्रमुख शिखरों की ऊँचाई 7200 मी से अधिक तक पहुँच जाती है। इस दक्षिणपश्चिम की मोड़ में 64 किमी से 80 किमी तक शिखरों में अनेक दर्रें हैं। इनमें 4500 मी. की ऊँचाई पर स्थित दुराह समूह के दर्रें महत्वपूर्ण हैं जो चित्राल एवं ऑक्सस (Oxus) नदियों को जोड़नेवाली महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं। खाबक दर्रा वर्ष भर चालू रहता है और बदकशान से होता हुआ सीधे काबुल तक चला गया है। यह दर्रा महत्वपूर्ण काफिलापथ है। हिंदूकुश के उत्पत्ति स्थान से चार प्रमुख नदियाँ ऑक्सस, यारकंद दरिया, कुनार और गिलगिट निकलती हैं। हिंदूकुश पर्वतमाला की चार प्रमुख शाखाएँ हैं। इन सब शाखाओं से नदियाँ निकलकर मध्य एशिया के सभी प्रदेशों में बहती है।