Wednesday, February 29, 2012

मदद के लिए सदैव तैयार रहने वाले को ही समाज में प्रतिष्ठा हासिल होती है.....

वर्तमान दौर की युवा पीढ़ी मुझे ज्यादा ऊर्जावान लगती है। ये खुद को ज्यादा अच्छे से प्रस्तुत करते हैं। पुराने समय के बच्चों की तुलना में आज के बच्चे ज्यादा प्रोफेशनल भी हैं। अगर संगीत के क्षेत्र की बात की जाए, तो इसमें भी मुझे बहुत ज्यादा उत्साही युवक दिखाई पड़ते हैं, लेकिन इनके साथ समस्या एक ही है। इनमें नतीजे की जल्दी है। ये हर चीज जल्दी पाना चाहते हैं। सामान्यत: पैसा-प्रसिद्धि की चाह सभी को रहती है और यह सब समय आने पर मिलता भी है, लेकिन बड़े कलाकार जैसा पहनते हैं या जैसा करते हैं- वैसा करने की कोशिश कहां तक सही है? व्यक्ति को अपनी हैसियत पता होनी चाहिए। युवाओं के साथ यही परेशानी है कि बजाय रियाज करने के, उनका ध्यान धन-शोहरत पाने पर रहता है। ......हरिप्रसाद चौरसिया


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एक बार अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन शहर का जायजा लेने निकले। रास्ते में एक जगह इमारत बन रही थी। वह कुछ देर रुक गए और निर्माण कार्य को गौर से देखने लगे। उन्होंने देखा कि कई मजदूर एक बड़ा-सा पत्थर उठाकर इमारत पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। पत्थर बहुत ही भारी था, इतने मजदूरों से भी उठ नहीं पा रहा था। पास खड़ा ठेकेदार मजदूरों को पत्थर न उठा पाने के लिए डांट रहा था। वॉशिंगटन ने ठेकेदार के पास जाकर कहा, ‘मजदूरों की मदद करो। एक और आदमी अपना हाथ लगा दे तो शायद पत्थर उठ जाएगा।’ ठेकेदार वॉशिंगटन को पहचान नहीं पाया और रौब से बोला, ‘मैं दूसरों से
काम लेता हूं, मैं मजदूरी नहीं करता।’ यह जवाब सुनकर वॉशिंगटन घोड़े से उतरे और पत्थर उठाने में मजदूरों की मदद करने लगे। उनके सहारा देते ही पत्थर उठ गया और आसानी से ऊपर चला गया। अब वॉशिंगटन वापस अपने घोड़े पर आकर बैठ गए और बोले, ‘सलाम ठेकेदार साहब, भविष्य में कभी आपको एक व्यक्ति की कमी मालूम पड़े तो राष्ट्रपति भवन में आकर जॉर्ज वॉशिंगटन को याद कर लेना।’ यह सुनते ही ठेकेदार राष्ट्रपति के पैरों पर गिर पड़ा और अपने र्दुव्‍यवहार के लिए क्षमा मांगने लगा। वॉशिंगटन ने उससे विनम्रता से कहा, ‘मेहनत करने से कोई भी आदमी छोटा या बड़ा नहीं हो जाता। मजदूरों की मदद करने से तुम उनका सम्मान हासिल करोगे।


याद रखो, मदद के लिए सदैव तैयार रहने वाले को ही समाज में प्रतिष्ठा हासिल होती है। इसलिए जीवन में ऊंचाइयां हासिल करने के लिए व्यवहार में विनम्रता का होना
बेहद जरूरी है।’ उस दिन के बाद से ठेकेदार के व्यवहार में आश्चर्यजनक रूप से बदलाव आया। वह सभी के साथ अत्यंत नम्रता से पेश आने लगा।

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लोग गुरुमंत्र तो लेते हैं लेकिन अक्सर उसके पीछे अपनी शंकाएं भी चिपका देते हैं। मन में अविश्वास का भाव आया कि मंत्र का असर ख़त्म हुआ समझिए। मन का विश्वास ही एक साधारण से मंत्र को चमत्कारी बना सकता है। अगर गुरु से मंत्र दीक्षा में लिया है तो उसमे पूरा भरोसा रखिये। विश्वास से बड़ा कोई मंत्र नहीं है।
शंका करना मन का स्वभाव होता है। किसी पर अविश्वास करके मन बड़ा प्रसन्न रहता है। इसीलिए लोग गुरु के शब्दों में भी संदेह ढूंढ़ते हैं। सिद्ध गुरु आरंभ में शब्द ऐसे बोलते हैं कि मन के द्वार बंद न हो जाएं। गुरुमंत्र में ऐसा प्रभाव होता है कि वह मन में प्रवेश करता है और फिर धीरे-धीरे उसकी सफाई करता है।
शक्तिपात गुरु स्वामी शिवोमतीर्थजी महाराज कहा करते थे कि मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा विकसित हो गया है कि वह हर बात में शंका करता है। उससे कोई कितनी भी सहानुभूति करे, वह उसमें भी संशय करता है। अध्यात्म के विषय में उसने केवल सुना ही सुना है, अनुभव नहीं किया। इसलिए इस संबंध में वह और भी अधिक शंकालु हो गया है।
जब तक उसके मन में गुरु वचनों पर दृढ़ श्रद्धा नहीं होती, अंतर की शंका नीचे नहीं दबती। गुरु इस बात से अच्छी तरह परिचित होते हैं। अत: वह अपनी कृपा से शिष्य को चेतना शक्ति की जागृति का प्रत्यक्ष अनुभव करा देते हैं। चित्त में एक चिंगारी सुलग उठती है, जो आध्यात्मिक जागृति के लिए बीज का काम करती है।
सूर्य के फैलने वाले प्रकाश के पूर्व किरण होती है, जिससे साधक को ज्ञात हो जाता है कि चित्त में चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश होने वाला है, जिससे उसके मन में गुरु के प्रति, साधन के प्रति, अनुभव के प्रति श्रद्धा पैदा हो उठती है। श्रद्धा ही साधन का आधार है तथा सभी शंकाओं को दूर करने में मददगार है। श्रद्धा को केवल कर्मकांड से बलवती नहीं बनाया जा सकता, इसके लिए ध्यान बहुत जरूरी है। लगातार ध्यान करने से जो अनुभव होते हैं, उससे श्रद्धा परिष्कृत होती है।

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बोलना और सुनना हमारी फितरत में शामिल है। कुछ लोगों को बोलने की बीमारी-सी हो जाती है। इसी तरह सुनने का भी नशा होता है। जब सुनने की इच्छा खूब होने लगती है तो आदमी दूसरों की बातों में रुचि लेने लगता है। क्या सुना जाए, भक्ति के क्षेत्र में यह भी आवश्यक है, क्योंकि हमारे जीवन में और इस ब्रहांड में बहुत कुछ अनसुना भी मौजूद है।


भजन, कीर्तन आध्यात्मिक प्रतिध्वनि होते हैं। इनके बोल जागरूकता के लिए प्रेरक बन जाते हैं। जिन्हें शांति की तलाश हो, वे अपने श्रवण, रुचि और क्षमता पर थोड़ा ध्यान दें।


ऐसा न सुनें, जो आवश्यक न हो और ऐसा जरूर सुनें, जो हमें और गहराई में ले जाए। इसलिए मेडिटेशन के समय शास्त्रीय संगीत की कुछ धुनें बड़ी काम आती हैं। कभी-कभी तो हमें ऐसा लगता है, जैसे ये स्वर हमें हौले-हौले हमारे ही भीतर गहरे ले जा रहे हों।


अंदर जाते समय जरा भी लड़खड़ाहट हो तो संगीत हमें संभाल लेता है। इसे ही साउंड ऑफ साइलेंस कहेंगे। थोड़ा समय इसे सुनने का प्रयास करें, क्योंकि हम सब शून्य से घबराते हैं। थोड़ा समय आंखें बंद करके जब बैठेंगे तो जो मौन, शून्य भीतर घटता है, उससे घबराहट होगी, क्योंकि आंखें बंद करते ही अंधेरा छा जाता है और अंधेरे में जैसे हम चलते समय किसी भी चीज से टकराते हैं, वैसे ही भीतर के अंधेरे में भी हड़बड़ाहट शुरू होती है।


थोड़ा-थोड़ा अभ्यास रोज करें। थोड़ी देर अधिक अंधेरे में रहो तो उस स्थान पर चलने का अभ्यास हो जाता है। आंखें बंद हों और कानों से कुछ ऐसा सुनें, जो हमें अपने ही भीतर उस अनसुने की ओर ले जाएगा, जिसे सुनकर गहरी शांति मिलेगी।

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कहना आसान है कि कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो। पहले तो इसी पंक्ति में संशोधन कर लें। फल की चिंता जरूर करें, क्योंकि बिना चिंता पाले कर्म की योजना, कर्म में परिश्रम नहीं हो पाएगा। इतना जरूर ध्यान रखें कि फल में आसक्ति न हो। दिक्कत आसक्ति से शुरू होती है, लेकिन ऐसा करना भी कठिन मालूम पड़ता है।


आजकल तो पहले फल निर्धारित किया जाता है, फिर आदमी कर्म करता है। इसीलिए जब उसे वांछित फल नहीं मिलता, तब वह परेशान होता है। फल की आसक्ति से मुक्त होने के लिए हमें अपने मनुष्य होने की रचना को समझना होगा। हम दो बातों से मिलकर बने हैं, दैवीय तत्व और भौतिक तत्व।


हमारी आत्मा दैवीय तत्व का हिस्सा है, मन भौतिक तत्व से जुड़ा है और तन इन दोनों का मिश्रण है। मन का स्वभाव है कि उसे सबकुछ चाहिए, बेलगाम चाहिए। इसीलिए मन या तो भविष्य की सोचता है या भूतकाल की, उसे वर्तमान में रुचि नहीं है। यह तमोगुणी स्वभाव है। आत्मा के भी तीन गुण होते हैं, जिन्हें सत्, चित् और आनंद कहा गया है।


जैसे मछली को जल में रहना ही प्रिय है, वैसे ही आत्मा आनंद में ही रहती है। जो आनंद में रहता है, वह भविष्य में फल की आसक्ति नहीं करता। इसलिए कर्म करते समय शरीर पूरा परिश्रम करे, लेकिन हम आत्मा की ओर मुड़े रहें, केवल मन पर न टिकें। और इसीलिए योगियों ने ध्यान को महत्व दिया है। ध्यान का अर्थ है वर्तमान पर टिकना। कई लोग पूछते हैं - क्या ध्यान करने से शांति मिलेगी? यह प्रश्न ही ध्यान में बाधा है। आप सिर्फ क्रिया करिए और अपने आप वह मिलेगा, जो सही है।

Monday, February 20, 2012

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)


  • कृषि और समवर्गी क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करना,
  • राज्यों को कृषि और समवर्गी क्षेत्र की योजनाओं के नियोजन व निष्पादन की प्रक्रिया में लचीलापन तथा स्वायतता प्रदान करना,
  • कृषि-जलवायुवीय स्थितियाँ, प्रौद्योगिकी तथा प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर जिलों और राज्यों के लिए कृषि योजनाएँ तैयार किया जाना सुनिश्चित करना,
  • यह सुनिश्चित करना कि राज्यों की कृषि योजनाओं में स्थानीय जरूरतों/फसलों/ प्राथमिकताओं को बेहतर रूप से प्रतिबिंबित किया जाए,
  • केन्द्रक हस्तक्षेपों के माध्यम से महत्वपूर्ण फसलों में उपज अंतर को कम करने का लक्ष्य प्राप्त करना,
  • कृषि और समवर्गी क्षेत्रों में किसानों की आय को अधिकतम करना, और
  • कृषि और समवर्गी क्षेत्रों के विभिन्न घटकों का समग्र ढंग से समाधान करके उनके उत्पादन और उत्पादकता में मात्रात्मक परिवर्तन करना।
       
  • गेहूँ, धान, मोटे अनाज, छोटे कदन्न, दालों, तिलहनों जैसी प्रमुख खाद्य फसलों का समेकित विकास,
  • कृषि यंत्रीकरण,
  • मृदा स्वास्थ्य के संवर्धन से संबंधित क्रियाकलाप,
  • पनधारा क्षेत्रों के अन्दर तथा बाहर वर्षा सिंचित फार्मिंग प्रणाली का विकास और साथ ही पनधारा क्षेत्रों, बंजर भूमियों, नदी घाटियों का समेकित विकास,
  • राज्य बीज फार्मों को सहायता,
  • समेकित कीट प्रबंधन योजनाएँ,
  • गैर फार्म क्रियाकलापों को बढ़ावा देना,
  • मण्डी अवसंरचना का सुदृढ़ीकरण तथा मण्डी विकास,
  • विस्तार सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए अवसंरचना को मजबूत बनाना,
  • बागवानी उत्पादन को बढ़ावा देने संबंधी क्रियाकलाप तथा सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को लोकप्रिय बनाना,
  • पशुपालन एवं मात्स्यिकी विकाय क्रियाकलाप,
  • भूमि सुधारों के लाभानुभोगियों के लिए विशेष योजनाएँ,
  • परियोजनाओं की पूर्णता की अवधारणा शुरू करना,
  • कृषि/बागवानी को बढ़ावा देने वाले राज्य सरकार के संस्थाओं को अनुदान सहायता,
  • किसानों के अध्ययन दौरे,
  • कार्बनिक तथा जैव-उर्वरक एवं
  • अभिनव योजनाएँ।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के अंतर्गत वित्त पोषण की पात्रता के लिए सरकार ने रेशम उत्पादन और सम्बद्ध गतिविधियों का RKVY के तहत समावेश का फैसला किया है। इसमें रेशम कीट के उत्पादन के चरण तक रेशम उत्पादन शामिल रहेगा और साथ ही कृषि उद्यम में रेशम कीट के उत्पादन व रेशम धागे के उत्पादन से लेकर विपणन तक विस्तार प्रणाली भी।
अब RKVY का लाभ रेशम उत्पादन विस्तार प्रणाली में सुधार, मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर करने, वर्षा से पोषित रेशम उद्योग को विकसित करने तथा एकीकृत कीट प्रबंधन के लिए में लिया जा सकता है। लाभ रेशम के कीड़ों के बीज बेहतर करने तथा क्षेत्र के मशीनीकरण के लिए होंगे। यह निर्णय बाजार के बुनियादी ढांचे के विकास तथा सेरी उद्यम को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान करेगा। गैर कृषि गतिविधियों के लिए परियोजनाएं हाथ में ली जा सकती हैं और भूमि सुधार के लाभार्थियों जैसे सीमांत व छोटे किसानों आदि को विशेष योजनाएं स्वीकृत कर रेशम कीट पालन किसान को अधिकतम लाभ दिया जा सकता है।

Tuesday, February 14, 2012

साहित्‍य अकादेमी पुरस्कार-2011

वर्ष 2011 के लिए साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार प्रदान किये गये। इस अवसर पर 22 प्रख्‍यात लेखकों और कवियों को इन पुरस्‍कारों से सम्‍मानित किया गया। स्वर्गीय कबिन फुकन (असमी), मणिन्द्र गुप्‍ता (बंगाली), प्रेमानंद मुसाहरी (बोडो), नसीम शफी (कश्‍मीरी), मेलवीन रॉड्रिग्स (कोंकणी), हरेकृष्‍ण सतपथी (संस्‍कृत), आदित्‍य कुमार मंडी (संथाली) और खलील मामून (उर्दू) इन पुरस्‍कार प्राप्तकर्ताओं में शामिल हैं। 

प्रख्‍यात उपन्‍यासकार काशीनाथ सिंह (‍हिन्‍दी), गोपालकृष्‍ण पाई (कन्‍नड), क्षेत्री बीरा (मणिपुरी), कल्पना कुमारी देवी (उडि़या), बलदेव सिंह (पंजाबी), अतुल कनक ( राजस्थानी) और एस. वेंकटेशन (तमिल) ने भी पुरस्कार प्राप्त किये। 

ललित मगोत्रा (ढोगरी), ग्रेस (मराठी) और सामला सदाशिव (तेलूगु) लेखों की उनकी पुस्तकों के लिए पुरस्कृत किया गया। 

रामचन्द्र गुहा (अंग्रेजी) को विवरणात्मक इतिहास की उनकी पुस्तक के लिए, मोहन परमार (गुजराती) को लघुकथा की उनकी पुस्तक के लिए, एन के सानू, (मलयालम) को जीवनी की उनकी पुस्तक के लिए और मोहन गेहानी (सिंधी) को नाटकों की उनकी पुस्तक के लिेए पुरस्कृत किया गया है। मैथिली भाषा के लिए पुरस्कार की घोषणा होना अभी तक बाकी है। 

साहित्य अकादेमी की ओर से आयोजित साहित्योत्सव के दौरान एक विशेष कार्यक्रम में इन पुस्तकों के लेखकों को पुरस्कार स्वरूप ताम्रफलक से उत्कीर्ण एक मंजूषा, एक चादर और एक लाख रुपये का एक चैक भेंट किया गया। इस अवसर पर हिन्दी के प्रख्यात व्यंग्यकार प्रोफेसर नामवर सिंह मुख्य अतिथि और साहित्य अकादेमी प्रेमचंद फेलो सुमती शिवमोहन सम्मानित अतिथि थे।