Monday, July 13, 2009

जंगलों पर मानव का प्रकोप

हमारे देश में चिपको व अपिको आंदोलन जैसे वन बचाने के अनेक प्रेरणादायक उदाहरण हैं। गांववासियों के ये दो प्रयास ही लाखों वृक्षों को कटने से बचाने में सफल रहे। इन आंदोलनों के फलस्वरूप एक बड़े क्षेत्र में पहले वनों के व्यापारिक कटान पर रोक लगी व अनेक परियोजनाओं या निर्माणों के लिए जो वृक्ष कटान था, उसमें काफी कमी की गई।ऐसे आंदोलनों के बावजूद आज पेड़ों की कटाई अंधाधुंध जारी हैसरकारी प्रयास नाकाफी है
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है, जैसे हाल में अरावली क्षेत्र में हरियाली नष्ट करने वाले खनन पर रोक लगाई है । इस तरह के प्रयासों के बावजूद प्राकृतिक वनों की कटाई की अनुमति बहुत तेजी से दी जा रही है। यही स्थिति रही तो चार-पांच वर्षों में ही हमारे बचे-खुचे प्राकृतिक वनों की असहनीय क्षति हो जाएगी। सरकार का कहना है की बड़ी संख्या में पेड़ लगाए जा रहे है जबकि वास्तविकता इसके ठीक उलट हैकुल मिलाकर देखे तो पर्यावरण की असहनीय क्षति हो रही है और कृत्रिम रूप से लगाए गए वृक्ष कभी भी प्राकृतिक वनस्पति का स्थान नही ले सकतेग्लोबल वार्मिंग से निबटने के लिए सबसे आसान तरीका यही है की ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाये जाय
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी को हमारी केन्द्र और राज्य सरकारें गंभीरता से नही ले रही है , यह एक चिंता का विषय हैइन्हे अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए नही तो सतत विकास की अवधारणा केवल एक अवधारणा ही बन कर रह जायेगी । बड़े शहरों में शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण व पेड़ों की रक्षा की आवश्यकता के बारे में जानकारी तो बढ़ी है, पर इसके बावजूद दिल्ली हो या मुंबई या अपेक्षाकृत छोटे शहर, बड़ी संख्या में वृक्षों की कटाई के दर्दनाक समाचार मिलते ही रहते हैं।अतः पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रसार करना सरकार की जिम्मेदारी बनती है
सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से पल्ला नही झाड़ सकती
नगरों में आर्थिक दबाव के कारण भी वृक्षों की बड़ी संख्या में कटाई हो रही हैलोग पार्क की बजाय गाड़ी की पार्किंग में ज्यादा रूचि लेते हैअब समय की मांग है की लोगो में जनजागरण का अभियान चलाया जाय और पेड़ों की कटाई पर तुंरत रोक लगा दी जाय

4 comments:

hem pandey said...

पेड़ों की कटाई पर्यावरण संतुलन बिगाड़ कर भूस्खलन आदि अनेक समस्याएं पैदा कर रही है यह बात काफी पहले उजागर हो चुकी है, किन्तु विभिन्न कारणों से इस पर समुचित नियंत्रण नहीं हो पा रहा है., जो दुखदाई है.

Science Bloggers Association said...

Sahi baat. Kash ispar sabhi log dhyan dete.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

कडुवासच said...

... सच कहा, अगर अब भी प्रयास नही किये गये तो परिणाम ... !!!!!!

sandhyagupta said...

Aapki baat se sahmat hoon.