Saturday, March 21, 2009

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है .....

है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है ..... यह कथन मुझे रात में याद आ रहा था । रात में बिजली चली गई थी , कुछ पढ़ने का मन भी कर रहा था पर आलस की वजह से बाहर जाकर मोमबती लाने में कतरा रहा था । तभी दिमाग में यह बिचार आया और भाग कर मोमबती लेने चला गया । बिजली काफी देर तक नही आई .... इसी बिच मैंने कुछ पढ़ लिया ।

यह एक छोटी सी घटना है । पर इसका अर्थ काफी बड़ा है । जीवन में कई ऐसे मौके आते है जब हम अँधेरी रात का बहाना बना काम को छोड़ देते है । माना की समाज के सामने चुनौतिया ज्यादा है और समाधान कम । तो क्या हुआ ? यह कोई नई बात तो है नही .... हमेशा से ऐसा ही होता रहा है । आम आदमी की चिंता करने वाले काफी कम लोग है । गरीबों के आंसू पोछने वाले ज्यादातर नकली है ... तो क्या हुआ , आपको कौन मना कर रहा है की आप असली हमदर्द न बने । मै समझता हूँ की यह ख़ुद को धोखा देने वाली बात हुई । एक चिंगारी तो जलाई ही जा सकती है .... इसके लिए किसी का मुंह देखने की जरुरत नही है । परिस्थितिओं का रोना रो रो कर तो हम बरबाद हो चुके है । अब और नही ..... यह शब्द दिल से जुबान पर आना ही चाहिए ।

सोचता हूँ , अँधेरी रात का बहाना हम अपनी कमियों को छिपाने के लिए बनाते है .... औरो का तो नही पता पर मै इस काम में माहिर हूँ । ये बड़ी शर्म की बात है .... जीवन को अर्थहीन बनाने में इसका बड़ा योगदान रहा है । पर अब एक मकसद मिल गया है ..... दीपक तो जलाना ही पड़ेगा ।

इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है

हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है .......

यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो .... किसी ने रोका तो नही है न ....

5 comments:

Anonymous said...

इस सकारात्मक जज्बे के लिए साधुवाद.

हिमांशु पाण्‍डेय said...

..... दीपक तो जलाना ही पड़ेगा ।
सचमुच श्रीमान जी आज नहीं तॊ कल शुरुआत तॊ करनी ही पडेगी फिर आज क्यॊं नहीं बहुत अच्छे विचार हैं बहुत बढिया

RAJNISH PARIHAR said...

लोग चलते चलते हर मोड़ पर संभलते.. क्यूँ है..,इतना डरते है तो फिर घर से निकलते क्यूँ है???ऐसे ही हालात का वर्णनं आपने किया है..अँधेरा कितना भी गहरा क्यूँ ना हो ...मंजिले कितनी दूर क्यों ना हो...शुरुआत तो किसी न किसी को करनी पड़ेगी...दीपक तो जलाना ही होगा....!

roy said...

है अँधेरी रात में , दीपक जलना कब मना,
तुम जो आगे बढ़ चले, कोई साथ आए कब मना,
दीवारें आएँगी अक्सर, है उन्हें गिरना कब मना ,
मंजिल तक पहुंचे न पहुंचे, है कदम बढ़ाना कब मना,
है अँधेरी रात में ...

shama said...

Behad damdaar lekhan karte hain...seedha apne vishaype pohonch, bina kisee bhoomikaake...vilakshan..aisahee likha paathak ko baandhe rakhta hai..
Meree "kavita" blog ki URL badal gayee hai, so filhaal "shama"pe click karen, us blogpe pohonchneke liye to mai apki behad shukrguzaar rahungi.
Nayee URL ki soochana aapko jalhi " chitthaa jagat" se mil jayegi !
Aapki rachnayen behtareen hotee hain, aur aapki tippaniyon kee mai qadr kartee hun!
Shubhkamanayen aur dhanywad!