Monday, May 11, 2009

लेखन का आनंद

लेखन का आनंद ही अलग है । यहाँ दूसरों पर बहुत कम निर्भरता है । यहाँ बाजार कम, रचनाकार ज्यादा तय करता है । बाजार और लेखन में कोई सामंजस्य नही हो सकता ....अगर बिठाने की कोशिश की गई तो लेखन का विकृत रूप देखने को मिलेगा ।
लेखन तो प्रकृति के काफी निकट है । बाजार में नही मिल सकता । यह तो प्रकृति के गोद में ही मिलेगा ।
लेखन में आजादी है ...सोचने की , कुछ अलग करने की और कुछ नया लिखने की । निश्चित रूप से अपने आप को पहचानने की संभावना भी यही छुपी हुई है ।
मन में आता है किसी पर्वत की चोटी पर बैठ कर दुनिया भर के अनोखे लोगों के लिए कुछ लिखूं । आजादी और रचनात्मकता को गले लगाऊं । बर्फ , झरने और नदियों को ई मेल कर नेचर के निकट जाऊं ।
अभी तो बहुत अनुभव लेने है । लेखन का दशमलव भी नही जानता । पर्वत की चोटी पर जाना तो दूर की बात है । भरोशा है ...चोटी पर न सही कुछ आगे तो जरुर जाऊँगा ।

7 comments:

दिगम्बर नासवा said...

आप जरूर आगे जायेंगे...........और सही कहा बाज़ार और लेखन में कोई समानता नहीं है.............

Mumukshh Ki Rachanain said...

लेखन तो प्रकृति के काफी निकट है । बाजार में नही मिल सकता । यह तो प्रकृति के गोद में ही मिलेगा ।
लेखन में आजादी है ...सोचने की , कुछ अलग करने की और कुछ नया लिखने की

सत्य ही कहा है. जो आनंद इसमें और इसमे रमने पर प्रक्रति की गोद में है वह चिरस्थाई शकून प्रदान करता है, बाकी सब क्षणिक.

आपकी अभिलाषा पूर्ण हो इसी शुभकामना के साथ आपका

चन्द्र मोहन गुप्त

कडुवासच said...

बहुत खूब, मंजिल की ओर जा रहे हो, शुभकामनाएँ।

जयंत - समर शेष said...

Waah kyaa baat hai..
Kyaa likhaa hai..

:))

Kulwant Happy said...

लेखन में आजादी है ...सोचने की , कुछ अलग करने की और कुछ नया लिखने की

सही फरमाया आपने

अनिल कान्त said...

lekhan agar bazar ke hisab se chalta to na jane kya hota :) :)

admin said...

बिलकुल जाएंगे भई, हम सबकी दुआएं आपके साथ है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }