Friday, February 11, 2011

पृथ्वी दिवस

पृथ्वी दिवस भी होली , दिवाली ,दशहरा जैसे त्योहारों की तरह खुशी का दिन और खाने पिने का दिन मान कर मनाया जाने लगा है । इसके उद्देश्य को लोग केवल उसी दिन याद रखते है । बल्कि मै तो कहुगा की घडियाली आंसू बहाते है । हमें इस बात का अंदाजा नही है की कितना बड़ा संकट आने वाला है और जब पानी सर से ऊपर चला जायेगा तो चाहकर भी कुछ नही कर सकते , अतः बुद्धिमानी इसी में है की अभी चेत जाए ।
वैश्विक अतर पर पर्यावरण को बचाने की मुहीम १९७२ के स्टाकहोम सम्मलेन से होती है । इसी सम्मलेन में पृथ्वी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई और हरेक साल ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने पर सहमती व्यक्त की गई । १९८६ के मोंट्रियल सम्मलेन में ग्रीन हाउस गैसों पर चर्चा की गई । १९९२ में ब्राजील के रियो दे जेनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मलेन हुआ जिसमे एजेंडा २१ द्वारा कुछ प्रयास किए गए । इसी सम्मलेन के प्रयास से १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल को लागू करने की बात कही गई । इसमे कहा गया की २०१२ तक १९९० में ग्रीन हाउस गैसों का जो स्तर था , उस स्तर पर लाया जायेगा । अमेरिका की बेरुखी के कारण यह प्रोटोकाल कभी सफल नही हो पाया । रूस के हस्ताक्षर के बाद २००५ में जाकर लागू हुआ है । अमेरिका अभी भी इसपर हस्ताक्षर नही किया है । यह रवैया विश्व के सबसे बड़े देश का है , जो अपने आपको सबसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक देश बतलाता है । वह कुल ग्रीन हाउस गैस का २५%अकेले उत्पन्न करता है ।
अगर ऐसा ही रवैया बड़े देशो का रहा तो पृथ्वी को कोई नही बचा सकता । जिस औद्योगिक विकास के नाम पर पृथ्वी को लगातार लुटा जा रहा है , वे सब उस दिन बेकार हो जायेगे जब प्रकृति बदला लेना आरम्भ करेगी ।

6 comments:

Dr. Yogendra Pal said...

अमेरिका की तो बात ही मत कीजिये, वहाँ पर सत्ता बिजनेस के हिसाब से चलती है, उनको सिर्फ अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने से मतलब है पर्यावरण की चिंता उनको नहीं है

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आपकी चिन्ता एकदम सही है ...हम अपने पर्यावरण को ‘ब्लैक होल’ की ओर धकेलते जा रहे हैं...कांक्रीट के जंगल उगा रहे हैं....।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

चिंता की बात निश्चित तौर पर है ...

बहुत ही जानकारीपरक lekh ......

mark rai said...

yogendra ji...aapne bilkul sahi kaha america ko agar chinta hoti to wah kyoto protocal me shaamil ho jata...

mark rai said...

Sharad ji bilkul sahi ham udhar hi jaa rahe hai..

mark rai said...

surendra ji..chinta ki baat to hai aur isliye..is par control bhi karna hoga..