Friday, September 18, 2009

अपनों की खोज ..

अपना ब्लौग लाने की ज़रूरत क्या थी? इतनी मशहूर तो नहीं....सच मानिये..केवल अपने उन लिखने-लिखाने वाले साथियों की खोज के लिये जो पता नहीं कहां बिछड गये.... शायद कुछ मिल जायें इस ब्लौग के ज़रिये...
.......ये पंक्तियाँ है , वंदना अवस्थी जी के ब्लॉग ''अपनी बात'' की .....सच ! साथियों की खोज के लिए ही तो ब्लोगिंग शुरू हुई जो हिन्दी से नाता तोड़ कहीं गुम हो चुके है । हमें उन्हें न सिर्फ़ खोज लाना है बल्कि उन्हें उचित स्थान भी देना है ..और सुबह के भूले हुए को माफ़ भी कर देना है । बिछडे जब मिलते है तो गंगा बहती है ....और गंगा का बहना शुभ माना जाता है ।
अगर हम भी कहीं भटक जाय तो हमें अपने आप को भी खोज लाना है ....सच मानिये अपने आप को खोजना बहुत मुश्किल काम है, पर यह संभव है ..तो आइये मिलकर खोजना शुरू कर देते है ....अब देर करना ठीक नही....

2 comments:

Mumukshh Ki Rachanain said...

"सच मानिये अपने आप को खोजना बहुत मुश्किल काम है, पर यह संभव है ..तो आइये मिलकर खोजना शुरू कर देते है ....अब देर करना ठीक नही...."

बिलकुल ठीक नहीं, इसीलिए तो अपने ब्लाग में जब जो दिल में आया उट पटांग लिझ कर पोस्ट किये जा रहा हूँ, इस अभिलाषा में कि शायद कभी अपने आप को प् सकूं....... यात्रा जारी है..............

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

वन्दना अवस्थी दुबे said...

अपने आप को खोजना.......कितनी सच्ची बात. लेकिन आप इतने दिनों से दिखाई नहीं दिये.आप थे कहां?