बलवन दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने राजत्व की संकल्पना की और लूई चौदहवें की भांति राज्य को एक गंभीर पेशा बनाया . अलाउद्दीन खिलजी ने उसके राजत्व की संकल्पना में बदलाव कर उसे नया रूप दिया .उसने बलवन से रक्त और लौह की निति को ग्रहण किया जबकि तुर्की नस्लवाद को छोड़ दिया .उसने जलालुद्दीन खिलजी की परोपकारिता की निति को भी त्याग दिया जबकि धर्मनिरपेक्ष तत्वों को अपनाया .बलवन अपने को व्यक्तिगत बलवन से शासक बलवन के रूप में ढाल लिया .एक तरफ जहाँ उसने तुर्की नस्लवाद को बढ़ावा दिया वहीँ दूसरी तरफ उसने अपने तुर्की विरोधियों को इस क्रूरता के साथ कुचला की भारत में तुर्की नस्ल का पराभव हो गया .वह मंगोलों से निपटने में भी पूरी तरह सक्षम नहीं हुआ ,उसके समय में दिल्ली सल्तनत की सीमा सिन्धु नदी से सिकुड़ कर व्यास नदी तक रह गयी .सुलतान के महत्व को प्रदर्शित करने के लिए उसने कुछ गैर इस्लामिक प्रथाओं को भी बढ़ावा दिया जैसे नौरोज ,सिजदा पैबोस आदि .
बलवन ने सुलतान की गरिमा को बढाने में जरुर सफल हुआ .उसने नए क्षेत्रों को जितने पर ध्यान न देकर आंतरिक व्यवस्था और अपने क्षेत्रों को सुरक्षित बनाने पर ही ध्यान दिया जो समय की मांग भी थी . वह पहला शासक था जिसने राज्य को गंभीर पेशा बनाया और राजत्व की संकल्पना की .
Monday, January 11, 2010
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6 comments:
बहुत अच्छी जानकारी ... शुक्रिया इतिहास से मिलवाने का ......
... बेहद प्रभावशाली जानकारी !!!!!
आपको मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत खूब! इस बढ़िया जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
for giving useful knowledge .....thanx
Is blog pe pahali baar aayi..aapke lekhanka yah pahlu alag hai...itihaas ki jaankari saral shabdon me dee gayi hai,isliye padhne me ruchi bani rahti hai..
बहुत अच्छी जान कारी इतिहास की कक्षा की याद आ गयी।
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