दिल बैठ गया ....दिल की बातें अन्दर ही रह गई ।
इतना तो पता चल ही गया ....सपना देख रहा था ...जिसे एक दिन टूटना ही था ।
अपमानित भी हुआ ....शायद जिंदगी में पहली बार ....!
उसने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया । अन्दर तक हिल गया । दुबारा हिम्मत ही नही बची ....
इतना आकर्षण कभी नसीब नही हुआ था ....पर टुटा तो सीधे फर्श पर गिरा ।
एक सपना .....भूल जाना ही बेहतर है । यही प्रायश्चित है ।
Thursday, June 18, 2009
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