Friday, March 2, 2012

विद्यासागर नौटियाल

प्रेमचंद के बाद हमारे दौर में अगर कलम का कोई बडा सिपाही हुआ, तो वह विद्यासागर नौटियाल थे। जिन आदर्श और सिद्धांतों को उन्होंने कलम से लिखा उसे व्यवहारिक जीवन में भी जिया। बीए में पढने के दौरान ही उन्होंने भैंस का कट्टा जैसी कालजयी कहानी लिखी। हिंदी साहित्य में एक घास प्रेमचंद ने लिखी तो दूसरी घास नौटियाल ने। दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग और सामाजिक परिवेश की चुनौतियों को दर्शाने के साथ ही नैतिकता की नई भूमि तलाशते हैं। उनकी रचना भीम अकेला और उत्तर बायां हैं का मैं बडा प्रशंसक हूं।
विद्यासागर नौटियाल की लेखनी सदैव पीडितों और शोषितों के पक्ष में चलती रही। पहाडों के जीवन को उन्होंने अपनी रचना का प्रमुख विषय बनाया और उसे पोषित किया। पहाडों पर लिखते हुए वह न केवल जनसमस्याओं तक केंद्रित रहे बल्कि उसकी जमीनी हकीकत से हुक्मरानों को दो-चार कराते रहे। उनकी भाषा लोगों को आंदोलित करने वाली थी। उनकी राजनीति लाभ लेने के लिए नहीं, बल्कि जनसेवा के लिए थी। यही उनकी लेखनी में भी परिलक्षित होता है।
वह जितने प्रतिबद्ध, जुझारू और प्रगतिशील कम्युनिस्ट थे, उतने ही प्रतिबद्ध व समर्पित लेखक भी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन का नेतृत्व करते हुए वह डॉ. नामवर सिंह जैसे साहित्यकारों के संपर्क में आए। तब उनकी लिखी कहानी भैंस का कट्या बहुचर्चित व प्रसंशित हुई। इसके बाद उन्होंने पहाड के दुख-दर्द व वहां के संघर्ष को अपनी रचनाओं का विषय बनाया। उपन्यास उत्तर बायां है टिहरी के सामंती जीवन का मार्मिक आख्यान है। यह विरल है कि उन्होंने राजनीति के साथ गंभीर साहित्य भी रचा।

कथाकार विद्यासागर नौटियाल जितने साधारण और सरल थे, उतनी ही सादगी के कायल भी। बारहों महीने ठंडे पानी से स्नान करना उनकी दिनचर्या में शामिल था। हमेशा स्वस्थ रहने वाले नौटियाल पहली बार बीमार तब हुए, जब वह विधायक बने।
जब पहाड का साहित्य लिखा जाएगा, विद्यासागर नौटियाल का योगदान कोई भुला न पाएगा। वह कर्मठ, संघर्षशील नेता तो हिंदी के प्रभावशाली कथाकार थे। उनका जाना एक युग का बंद हो जाने सरीखा है। आजादी के ठीक बाद की युवा लेखकों की पीढी का एक सितारा टूट गया।
स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया को यहां खडा करने का श्रेय उन्हें जाता है। 1958-59 की बात है वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी हुआ करते थे। छात्र राजनीति में गहरी पैठ तो प्रभावशाली साहित्यकार के रूप में भी साख थी। इस बीच छात्रसंघ के सचिव चुने गए और विद्यार्थियों के मुद्दे पर आंदोलन छेड दिया। तीन माह संघर्ष चलता रहा इससे सरकार हिल गई। उन्हें मनाने को पहाड का होने के नाते गोविंद वल्लभ पंत को भेजा। आंदोलन खत्म करने की शर्त पर कांग्रेस में आमंत्रण व पद का प्रलोभन नौटियाल को डिगा न सका।

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