Saturday, March 3, 2012

आशा भोसले , बछेंद्री पाल , अपराजिता, शबाना,छवि.....

दीनानाथ मंगेशकर की पुत्री और भारत कोकिला लता मंगेशकर की बहन आशा भोसले की राहें आसान नहीं थीं। शुरू में उन्हें बी व सी ग्रेड की फिल्में ही मिलीं। उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुई फिल्म नया दौर। इसके बाद तो उनकी आवाज का जादू कुछ ऐसा छाया कि आज तक लोग उसमें बंधे हैं। वह जितनी गहराई से भजन गा सकती हैं, उतनी ही नजाकत से गजलें भी। ओ.पी. नैय्यर, खय्याम, सचिन देव बर्मन, आर.डी. बर्मन, जयदेव, शंकर जयकिशन, इलैया राजा, ए.आर. रहमान जैसे दिग्गज संगीत निर्देशकों के साथ उन्होंने काम किया। वह पहली भारतीय गायिका थीं, जिन्हें ग्रैमी अवॉर्ड के लिए नामांकित किया गया।

कुछ समय पूर्व दिल्ली में 23वें गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉ‌र्ड्स के अवॉर्ड समारोह में शिरकत करने आई आशा जी ने भावुक होकर कहा कि यह अवॉर्ड पाकर उन्हें लग रहा है कि वह विश्वस्तरीय गायिका हो गई हैं। हालांकि उन्हें मालूम था कि वही सबसे ज्यादा गीत रिकॉर्ड करने वाली गायिका हैं, लेकिन वह चुप रहीं। उन्होंने कहा कि जब तक उनकी सांसें चलेंगी, वह गाती रहेंगी। हालांकि आधुनिक संगीत की आलोचना करने से वह नहीं चूकीं। उन्होंने कहा कि यह बिना रूह के इंसान जैसा है। आशा को उनके चाहने वाले आने वाले दिनों में ऐक्टिंग के फील्ड में भी देखेंगे।
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उत्तराखंड के उत्तरकाशी में जन्मी बछेंद्री पाल के दिल में पहली बार पर्वतारोहण का जज्बा तब जगा, जब उन्होंने स्कूल की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में 400 मीटर की चढाई की। इसके बाद उन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग से प्रशिक्षण लिया। पहली बार 1984 में भारत के चौथे माउंट एवरेस्ट चढाई में हिस्सा लिया। इससे पहले पूरी दुनिया में चार स्त्रियां ही इसे फतह करने में कामयाब हुई थीं।

अभी वह जमशेदपुर में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के एडवेंचर अभियान की प्रमुख हैं। इसके तहत भारत सहित विश्व के कई देशों में माउंटेनियरिंग अभियान आयोजित किए जाते हैं। कहती हैं बछेंद्री, अभियान से जुडना बडा तोहफा है मेरे लिए। अब तो स्त्रियां भी बडी संख्या में माउंटेनियरिंग के लिए प्रेरित हो रही हैं। साल में एक बार उनके लिए अभियान चलाए जाते हैं। कोशिश होती है कि हर जगह की स्त्रियां शामिल हों। वह फिर कहती हैं, नेचर एक विशाल क्लासरूम है, जहां सीखने का कोई अंत नहीं है। हम अभी लीडरशिप स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चला रहे हैं। बेस कैंप उत्तरकाशी में है।
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दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा के बाद अपराजिता ने जर्नलिज्म व फिल्ममेकिंग का कोर्स किया। स्त्रियों के आर्थिक सशक्तीकरण विषय पर काम करते हुए लगा कि वह यही काम करना चाहती हैं। इसके बाद एक एनजीओ में काम किया तो पता चला कि भारत में प्रसव के दौरान हर साल 60-70 हजार स्त्रियों की मौत हो जाती है और इस तरह व्हाइट रिबन एलाइंस का गठन किया गया।

कहती हैं अपराजिता, स्त्रियों की सेहत चिंतनीय मुद्दा है। इसके दो कारण हैं, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और लिंगभेद। जहां ज्यादा जरूरी है वहां स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। दूसरी ओर लडकी को बचपन से सही पोषण नहीं दिया जाता। आंकडे बताते हैं कि विश्व की 20 प्रतिशत प्रसव संबंधी मौतें सिर्फ भारत में होती हैं। इसके बावजूद यह बडा मसला नहीं है। गोगोई कहती हैं, अगर मां को ही सही पोषण नहीं मिलेगा तो बच्चे कैसे स्वस्थ रहेंगे! जरूरत है कि इन मुद्दों पर दुगनी मेहनत की जाए, सोशल साइट्स के जरिये मुहिम जगाई जाए। स्त्री शिक्षा के लिए काम किया जाए और इसकी मुहिम जगाए हमारा युवा वर्ग। केरल में जहां सौ फीसदी साक्षरता है, वहां स्त्री स्वास्थ्य का स्तर भी ठीक है। इस मुद्दे पर सभी को आगे आना होगा, तभी थोडी सफलता की उम्मीद की जा सकती है।
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हिंदी सिनेमा में शबाना एक क्रांति का नाम है। समर्थ कलाकार के अलावा वह कर्मठ कार्यकर्ता भी हैं। 1988 में पद्मश्री के बाद हाल ही में उन्हें पद्मभूषण से नवाजा गया है। पुणे के फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट से अभिनय की बारीकियां सीखीं और पहली ही फिल्म अंकुर (1974) से उन्होंने जाहिर कर दिया कि किसी परिपाटी का अनुसरण नहीं करने वाली हैं। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। निशांत, शतरंज के खिलाडी, स्पर्श, अर्थ, मासूम, मंडी, खडंहर, पार जैसी सफल फिल्में उनकी झोली में हैं। उन्हें पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल हुए।

वह झुग्गी झोपडी के हक में लडने वाली संस्था निवारा हक सुरक्षा समिति की सदस्य बनीं। 1986 में कोलाबा की 25 वर्ष पुरानी झुग्गी-झोपडी को बचाने के लिए भूख हडताल पर बैठीं। दिल्ली के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जब उन्हें पहली अंग्रेजी फिल्म के प्रीमियर पर बोलने को कहा गया, तो वह नाट्यकर्मी सफदर हाशमी की खुलेआम हत्या पर बोलीं। वह वर्ष 1997 में राज्य सभा की सदस्य रहीं।

वह मशहूर शायर स्व.कैफी आजमी की बेटी व गीतकार जावेद अख्तर की पत्नी हैं। कैफी के देहांत के बाद वह उनकी संस्था मिजवां वेलफेयर सोसायटी के कार्यो को वह आगे बढा रही हैं। इसके तहत वह लडकियों को सिलाई-कढाई की ट्रेनिंग दे रही हैं। शबाना कहती हैं, मैं हमेशा सही समय पर सही स्थान पर रही। फिल्मों में आई तो समानांतर सिनेमा की शुरुआत हुई। फिर सही समय पर हॉलीवुड का रुख किया और अब मैं ऐसे माहौल में हूं, जहां उम्र की कोई बंदिश नहीं है।
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संयुक्त राष्ट्र में गरीबी दूर करने पर चल रही बहस में जब भारत के ग्राम सरपंच के बोलने की बारी आई तो यू.एन. के सदस्यों को लगा कि साडी पहनी हुई कोई संकोची सी युवती होगी, लेकिन जब जींस-टॉप में छवि राजावत उनसे मुखातिब हुई तो विदेशियों के मुंह खुले रह गए। उनके सामने खडी वह सरपंच तो बॉलीवुड ऐक्ट्रेस सी दिख रही थी। कभी वह क्रिकेट खेलती दिखती हैं तो कभी विकास कार्यो का जायजा लेती।

छवि ने ग्रामीण भारत की बदली तसवीर पेश की है दुनिया के सामने। एयरटेल के सीनियर मैनेजमेंट का हिस्सा रही छवि को कॉरपोरेट ग्लैमर और शहरी जीवन बांध नहीं सका। टोंक जिले के छोटे से गांव सोढा की राजपूत बाईसा हैं छवि। जब गांव वालों ने उनसे चुनाव लडने को कहा तो उन्होंने हाई प्रोफाइल करियर त्याग दिया। वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की बैठकों में हिस्सा लेती हैं और दुनिया के मंच पर भारतीय गांवों का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह रणनीति के तहत विकास-कार्य करती हैं। गांव वाले कहीं गलत हों तो उन्हें डांटने से भी नहीं चूकतीं। वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग व सामाजिक बदलाव की लडाई लडना चाहती हैं।

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